छत्तीसगढ़ में प्रमुख जनजाति विद्रोह || Chhattisgarh Pramukh Janjatiy Vidroh
Last Updated : Thursday 30 - 10 - 2025 | 08:22 AM
काकतीय वंश के शासन काल के दौरान दण्डकारण्य क्षेत्र में कई जनजाति विद्रोह प्रारम्भ हुए |यह विद्रोह जनजाति शोषण व सांस्कृतिक अस्मिता पर हस्तक्षेप आदि उद्देश्यो को लेकर प्रारम्भ हुए | छत्तीसगढ़ में जनजातियों का पहला विद्रोह हल्बा विद्रोह से प्रारम्भ हुआ जनजातियों की ज्यादातर विद्रोह जल, जंगल ,जमीन की लड़ाई थी। जिसके लिए उन्हें समय समय पर विद्रोह करना पड़ा।
| वर्ष | विद्रोह | शासक | नेतृत्वकर्ता |
| 1774 | हल्बा विद्रोह | अजमेर सिंह | अजमेर सिंह |
| 1795 | भोपालपटनम | दरियादेव | सम्पूर्ण गोंड जनजाति |
| 1825 | परलकोट विद्रोह | महीपालदेव | ठा. गेंद सिंह(परलकोट के जमींदार ) |
| 1842 | मेरिया / माडिया विद्रोह | भुपालदेव | हिङमा मांझी |
| 1842 | तारापुर विद्रोह | भूपालदेव | दलगंजन सिंह (तारापुर परगना प्रमुख ) |
| 1856 | लिंगागिरी विद्रोह | भैरमदेव | धुरवाराम माड़िया |
| 1859 | कोई विद्रोह | भैरम देव | नागुल दोरला (पोतेकेला के जमींदार ) |
| 1876 | मुरिया विद्रोह | भैरम देव | झाड़ा सिरहा |
| 1910 | भूमकाल विद्रोह | रुद्रप्रताप देव | गुण्डाधुर (नेतानार के जमींदार ) |
आइये अब हम विस्तार से छत्तीसगढ़ में प्रमुख जनजाति विद्रोह || Chhattisgarh Pramukh Janjatiy Vidroh के बारे में जानते है , जिसे हमने निचे आर्टिकल में दर्शया है।
हल्बा विद्रोह (1774-79 ) |
| शासक – अजमेर सिंह नेतृत्वकर्ता – अजमेर सिंह कारण – अजमेर सिंह एवं दरियादेव के मध्य उतराधिकारी का युद्ध एवं भौगोलिक सीमा हेतु | परिणाम – सन 1777 में अजमेर सिंह की मृत्यु के पश्चात सम्पूर्ण हल्बा विद्रोहियों को समाप्त कर दिया गया | |
भोपालपटनम विद्रोह (1795 ) |
| स्थान – बीजापुर नेतृत्व – सम्पूर्ण गोंड जनजाति शासक – दरियादेव घटना – कैप्टन ब्लांड को इंद्रावती नदी पर रोकना |
परलकोट विद्रोह (1825 ) |
| शासक – महीपालदेव नेतृत्वकर्ता – ठा. गेंदसिंह(परलकोट के जमींदार ) पदवी – भुईया उद्देश्य – अबुझमाङियो को शोषण मुक्त करने हेतु | – प्रतिक – धावड़ा वृक्ष की टहनी स्थान – परलकोट अबूझमाड़ क्षेत्र नारायणपुर दमनकर्ता – पेबे (एगन्यू के द्वारा नियुक्त ) कारण – अंग्रेज मैराथन के शोषण के खिलाफ ब्रिटिश अधिकारी – के.एगन्यु विद्रोह को दबानेवाले -के.पेबे परिणाम – 25 जनवरी1825 को गेंदसिंह को फांसी दे दी | नोट :- गेंदसिंह को बस्तर का प्रथम शहीद कहा जाता है। |
मेरिया / माडिया विद्रोह (1842 – 1863 ) |
| शासक – भुपालदेव नेतृत्वकर्ता – हिङमा मांझी उद्देश्य – नरबलि प्रथा समाप्त करने के विरोध में कारण – सांस्कृतिक हस्तक्षेप के कारण स्थान – दंतेश्वरी मंदिर जांचकर्ता – मैकफ़र्सन दमनकर्ता – केम्पबेल विशेष – इस विद्रोह के समय अंग्रेजो ने काकतीय वंश के शासक भूपाल देव पर महाभियोग लगाया था और जिस व्यक्ति की बलि दंतेश्वरी मंदिर में दी जाती थी उसे मेरिया कहते थे | |
तारापुर विद्रोह (1842 -1854 ) |
| शासक – भूपालदेव नेतृत्व कर्ता – दलगंजन सिंह (तारापुर परगना प्रमुख ) स्थान – जगदलपुर बस्तर कारण – मराठो द्वारा कर में वृद्धि – परिणाम – मेजर विलियम्सन के द्वारा कर वृद्धि के आदेश को वापस लिया गया | |
लिंगागिरी विद्रोह (1856) – बस्तर का मुक्तिसंग्राम |
| शासक – भैरमदेव नेतृत्वकर्ता – धुरवाराम माड़िया कारण – बस्तर को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के विरोध में एवं अग्रेजो के अत्याचार के कारण परिणाम – धुरवा राम को फांसी दिया गया (धुरवा राम बस्तर का दूसरा शहीद ) विशेष – ये पहला सशस्त्र विद्रोह कहा गया| यह विद्रोह 1857 की क्रांति के पूर्व हुआ | |
कोई विद्रोह ( 1859 ) |
| शासक – भैरम देव कारण – , अंग्रेजो द्वारा साल वृक्ष की कटाई को रोकने हेतु | नारा – एक साल के पीछे एक सिर नेतृत्वकर्ता – नागुल दोरला (पोतेकेला के जमींदार ) सहयोगी – रामभोई ,जग्गा राजू परिणाम – सफल रहा अंग्रेजो ने कटाई रुकवा दी। विशेष – अंग्रेजो के विरुद्ध प्रथम सफल आंदोलन। इसे चिपको आंदोलन से सम्बंधित माना जाता है | |
मुरिया विद्रोह –(जनवरी 1876 ) |
| नेतृत्वकर्ता – झाड़ा सिरहा प्रतिक – आमवृक्ष की टहनी दमनकर्ता – मैक जार्ज विशेष – मुरिया विद्रोह को बस्तर का स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है। परिणाम – 2 मार्च 1876 को बस्तर का कला दिवस मानाया गया। जिसके बाद मैक जार्ज द्वारा 8 मार्च 1876 को जगदलपुर में मुरियादरबार का आयोजन करवाया | |
भूमकाल विद्रोह (फ़रवरी 1910 ) |
| शासक – रुद्रप्रताप देव नेतृत्वकर्ता – गुण्डाधुर (नेतानार के जमींदार ) उद्देश्य – स्थानीय जनता की उपेक्षा शोषण वनों की के उपयोग एवं शराब बनाने का प्रतिबन्ध का विरोध प्रतिक – लाल मिर्च ,भाला तीर बाण , वृक्ष की टहनी , मुखबिर – सोनू मांझी दमनकर्ता – कैप्टन गेयर अंतिम सामना – विद्रोहियों और अंग्रेजो के बिच अलवार में हुआ परिणाम – असफल रहा छत्तीसगढ़ में नागवंशी शासन काल विशेष – रानी स्वर्णकुंवर व दिवानलाल कालेन्द्र ने इस विद्रोह का नेतृत्व गुण्डाधुर के हाथो सौंपा | |
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