छत्तीसगढ़ में प्रमुख जनजाति विद्रोह || Chhattisgarh Pramukh Janjatiy Vidroh
Last Updated : Friday 25 - 04 - 2025 | 01:20 AM
काकतीय वंश के शासन काल के दौरान दण्डकारण्य क्षेत्र में कई जनजाति विद्रोह प्रारम्भ हुए |यह विद्रोह जनजाति शोषण व सांस्कृतिक अस्मिता पर हस्तक्षेप आदि उद्देश्यो को लेकर प्रारम्भ हुए | छत्तीसगढ़ में जनजातियों का पहला विद्रोह हल्बा विद्रोह से प्रारम्भ हुआ जनजातियों की ज्यादातर विद्रोह जल, जंगल ,जमीन की लड़ाई थी। जिसके लिए उन्हें समय समय पर विद्रोह करना पड़ा।
वर्ष | विद्रोह | शासक | नेतृत्वकर्ता |
1774 | हल्बा विद्रोह | अजमेर सिंह | अजमेर सिंह |
1795 | भोपालपटनम | दरियादेव | सम्पूर्ण गोंड जनजाति |
1825 | परलकोट विद्रोह | महीपालदेव | ठा. गेंद सिंह(परलकोट के जमींदार ) |
1842 | मेरिया / माडिया विद्रोह | भुपालदेव | हिङमा मांझी |
1842 | तारापुर विद्रोह | भूपालदेव | दलगंजन सिंह (तारापुर परगना प्रमुख ) |
1856 | लिंगागिरी विद्रोह | भैरमदेव | धुरवाराम माड़िया |
1859 | कोई विद्रोह | भैरम देव | नागुल दोरला (पोतेकेला के जमींदार ) |
1876 | मुरिया विद्रोह | भैरम देव | झाड़ा सिरहा |
1910 | भूमकाल विद्रोह | रुद्रप्रताप देव | गुण्डाधुर (नेतानार के जमींदार ) |
आइये अब हम विस्तार से छत्तीसगढ़ में प्रमुख जनजाति विद्रोह || Chhattisgarh Pramukh Janjatiy Vidroh के बारे में जानते है , जिसे हमने निचे आर्टिकल में दर्शया है।
हल्बा विद्रोह (1774-79 ) |
शासक – अजमेर सिंह नेतृत्वकर्ता – अजमेर सिंह कारण – अजमेर सिंह एवं दरियादेव के मध्य उतराधिकारी का युद्ध एवं भौगोलिक सीमा हेतु | परिणाम – सन 1777 में अजमेर सिंह की मृत्यु के पश्चात सम्पूर्ण हल्बा विद्रोहियों को समाप्त कर दिया गया | |
भोपालपटनम विद्रोह (1795 ) |
स्थान – बीजापुर नेतृत्व – सम्पूर्ण गोंड जनजाति शासक – दरियादेव घटना – कैप्टन ब्लांड को इंद्रावती नदी पर रोकना |
परलकोट विद्रोह (1825 ) |
शासक – महीपालदेव नेतृत्वकर्ता – ठा. गेंदसिंह(परलकोट के जमींदार ) पदवी – भुईया उद्देश्य – अबुझमाङियो को शोषण मुक्त करने हेतु | – प्रतिक – धावड़ा वृक्ष की टहनी स्थान – परलकोट अबूझमाड़ क्षेत्र नारायणपुर दमनकर्ता – पेबे (एगन्यू के द्वारा नियुक्त ) कारण – अंग्रेज मैराथन के शोषण के खिलाफ ब्रिटिश अधिकारी – के.एगन्यु विद्रोह को दबानेवाले -के.पेबे परिणाम – 25 जनवरी1825 को गेंदसिंह को फांसी दे दी | नोट :- गेंदसिंह को बस्तर का प्रथम शहीद कहा जाता है। |
मेरिया / माडिया विद्रोह (1842 – 1863 ) |
शासक – भुपालदेव नेतृत्वकर्ता – हिङमा मांझी उद्देश्य – नरबलि प्रथा समाप्त करने के विरोध में कारण – सांस्कृतिक हस्तक्षेप के कारण स्थान – दंतेश्वरी मंदिर जांचकर्ता – मैकफ़र्सन दमनकर्ता – केम्पबेल विशेष – इस विद्रोह के समय अंग्रेजो ने काकतीय वंश के शासक भूपाल देव पर महाभियोग लगाया था और जिस व्यक्ति की बलि दंतेश्वरी मंदिर में दी जाती थी उसे मेरिया कहते थे | |
तारापुर विद्रोह (1842 -1854 ) |
शासक – भूपालदेव नेतृत्व कर्ता – दलगंजन सिंह (तारापुर परगना प्रमुख ) स्थान – जगदलपुर बस्तर कारण – मराठो द्वारा कर में वृद्धि – परिणाम – मेजर विलियम्सन के द्वारा कर वृद्धि के आदेश को वापस लिया गया | |
लिंगागिरी विद्रोह (1856) – बस्तर का मुक्तिसंग्राम |
शासक – भैरमदेव नेतृत्वकर्ता – धुरवाराम माड़िया कारण – बस्तर को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के विरोध में एवं अग्रेजो के अत्याचार के कारण परिणाम – धुरवा राम को फांसी दिया गया (धुरवा राम बस्तर का दूसरा शहीद ) विशेष – ये पहला सशस्त्र विद्रोह कहा गया| यह विद्रोह 1857 की क्रांति के पूर्व हुआ | |
कोई विद्रोह ( 1859 ) |
शासक – भैरम देव कारण – , अंग्रेजो द्वारा साल वृक्ष की कटाई को रोकने हेतु | नारा – एक साल के पीछे एक सिर नेतृत्वकर्ता – नागुल दोरला (पोतेकेला के जमींदार ) सहयोगी – रामभोई ,जग्गा राजू परिणाम – सफल रहा अंग्रेजो ने कटाई रुकवा दी। विशेष – अंग्रेजो के विरुद्ध प्रथम सफल आंदोलन। इसे चिपको आंदोलन से सम्बंधित माना जाता है | |
मुरिया विद्रोह –(जनवरी 1876 ) |
नेतृत्वकर्ता – झाड़ा सिरहा प्रतिक – आमवृक्ष की टहनी दमनकर्ता – मैक जार्ज विशेष – मुरिया विद्रोह को बस्तर का स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है। परिणाम – 2 मार्च 1876 को बस्तर का कला दिवस मानाया गया। जिसके बाद मैक जार्ज द्वारा 8 मार्च 1876 को जगदलपुर में मुरियादरबार का आयोजन करवाया | |
भूमकाल विद्रोह (फ़रवरी 1910 ) |
शासक – रुद्रप्रताप देव नेतृत्वकर्ता – गुण्डाधुर (नेतानार के जमींदार ) उद्देश्य – स्थानीय जनता की उपेक्षा शोषण वनों की के उपयोग एवं शराब बनाने का प्रतिबन्ध का विरोध प्रतिक – लाल मिर्च ,भाला तीर बाण , वृक्ष की टहनी , मुखबिर – सोनू मांझी दमनकर्ता – कैप्टन गेयर अंतिम सामना – विद्रोहियों और अंग्रेजो के बिच अलवार में हुआ परिणाम – असफल रहा छत्तीसगढ़ में नागवंशी शासन काल विशेष – रानी स्वर्णकुंवर व दिवानलाल कालेन्द्र ने इस विद्रोह का नेतृत्व गुण्डाधुर के हाथो सौंपा | |
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